चाँद कहिए
चाँद कहिए या चंद्रमा कहिए
उसके होने को ही कहा कहिए
बात तफ़सील से कहें बेहतर
और बेहतर हो, मुद्दआ कहिए
वो चले जाएँ, चलेगी महफ़िल
उनके जाने को मरहबा कहिए
उम्र-भर पूछते रहे दिल से
क्या किसी शै ने भी छुआ, कहिए
यों तो उम्मीद है नहीं कोई
फिर भी उम्मीद हो तो क्या कहिए!
२३ नवंबर २००९ |