धूप निकली
धूप निकली और मौसम खुल गया
आसमाँ का चेहरा भी धुल गया
खिड़कियाँ खुलकर मिलीं, कहने
लगीं
रंग रिश्तों का फिज़ाँ में घुल गया
टूटना संबंध का कुछ यों लगा
ज्यों सफ़र के बीच कोई पुल गया
दर्द कुछ गहरा गया, तड़पा गया
पास से गाकर कोई बुलबुल गया
हम उसे गाते रहे, सुनते रहे
उनका बाजूबंद जो खुल-खुल गया!
२५ नवंबर २००९ |