अनुभूति में
राजेन्द्र
तिवारी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कोई दौलत न शोहरत
दर्द के हरसिंगार
दे कोई कैद या रिहाई
सिर्फ बीनाई नहीं |
|
दे कोई कैद या
रिहाई
दे कोई कैद या रिहाई दे
बेख़ता है तो क्या सफाई दे।
मुझको जीना है इस जमाने में
या खुदा मुझको बेहयाई दे।
मेरा हमदर्द भी है नीम-हक़ीम
दर्द कुछ और कुछ दवाई दे।
तेरे आमाल भी हैं जिम्मेदार
सिर्फ़ क़िस्मत की मत दुहाई दे।
वो भी आवाज़ दे उधर से मुझे
काश पत्थर को कुछ सुनाई दे।
कोशिशें कामयाब कर मौला
मेरे लफ़्जों को रहनुमाई दे।
मेरी ग़ज़लों को इतना रौशन कर
दूर तक रास्ता दिखाई दे।
७ जनवरी २०१३ |