अनुभूति में
राजेन्द्र
तिवारी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कोई दौलत न शोहरत
दर्द के हरसिंगार
दे कोई कैद या रिहाई
सिर्फ बीनाई नहीं |
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दर्द के
हरसिंगार
दर्द के हरसिंगार ज़िंदा रख
यूं खि़जां में बहार ज़िंदा रख।
फत्ह का ऐतबार ज़िंदा रख
यानी अपना वक़ार ज़िंदा रख।
ज़िंदगी बेबसी की कैद सही
फिर भी कुछ इख़्तियार ज़िंदा रख।
टूटने को है दम अँधेरों का
सुब्ह का इंतज़ार ज़िंदा रख।
ख़्वाहिशें मर रही हैं मरने दे
यार खुद को न मार ज़िंदा रख।
मौत के बाद ज़िंदगी के लिए
तू कोई शाहकार ज़िंदा रख।
गर उसूलों की जंग लड़नी है
अपनी ग़ज़लों की धार ज़िंदा रख।
७ जनवरी २०१३ |