अनुभूति में
राजीव राय
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शाम से उदासी
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ज़िंदगी आँच से
ज़िंदगी आँच से तेरी पिघल गया हूँ मैं
कब तलक मोम-सा रहता, बदल गया हूँ मैं
लोग आये हैं मेरी क़ब्र पे सजदा करने
अब उन्हें कैसे बताऊँ कि गल गया हूँ मैं
वो तेरा देखना मुझको सरे महफ़िल ज़ालिम
अब मेरे बस में कुछ नहीं, मचल गया हूँ मैं
दिखाई रौशनी तुमने, बहुत हसीन मगर
हुआ ये देर से मालूम, जल गया हूँ मैं
ज़माना देख लिया और ज़माने का चलन
अब कोई पास न आएँ, सँभल गया हूँ मैं
३ मई २०१० |