अनुभूति में
राजीव राय
की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
ज़िंदगी आँच से
जिसने थामीं थीं
पूरी हो आखिर कैसे
ये जहाँ
हम उदास रहते हैं
अंजुमन में—
चाहा था जिसे हमने
पूछूँ मैं भला कैसे
बरसों निभाया
शाम से उदासी
हज़ारों नेकिया |
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हम उदास रहते हैं
बेवजह हम उदास रहते हैं
ग़म तो हर इक के पास रहते हैं
आजकल उनके मिलने वालों में
लोग कुछ ख़ास खास रहते हैं
मेरे दुश्मन भी कोई ग़ैर नहीं
वो मेरे आस-पास रहते हैं
जिनको दौलत है जान से प्यारी
उम्र भर बदहवास रहते हैं
हम तो मदहोश ही भले यारब़
होश वाले उदास रहते हैं
३ मई २०१० |