बरसों निभाया
बरसों निभाया जिनसे, मिलते नहीं
ख़ुशी से
ऐसे में याद आए, कुछ लोग अजनबी से
शोहरत तो बेवफ़ा है, रहती है
पास किसके
शिकवा नहीं है कोई, गुमनाम ज़िंदगी से
गुरबत के अंधेरों में, गुज़री
है ज़िंदगानी
दिल चौंक-सा जाता है, दौलत की रौशनी से
क्यों लोग सुनाते हैं, एहसान के
फसाने
कुछ भी तो नहीं चाहा, मैंने कभी किसी से
ढूँढ़ा हज़ार लेकिन, मिलती नहीं
वो दुनिया
रहते हों लोग जिसमें, मासूम आदमी से
इस सच को समझने में, कुछ देर तो
लगती है
मतलब के बिना कोई, मिलता नहीं किसी से
२१ सितंबर २००९ |