अनुभूति में
राज सक्सेना
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
एक डर अन्जान सा
नहीं करता जो दुश्मन भी
बाबू जी
हे प्रियतम तुमने वसंत में
हैरान कर
देंगे
|
|
नहीं करता जो
दुश्मन भी
नहीं करता जो दुश्मन भी, वही सब यार करता है
झुका कर शोख नज़्ररों को, जिगर पर वार करता है
मुझे मालूम है ये सब, मगर ये बात है दिल की,
अजब शै है ये मेरा दिल, उसी से प्यार करता है
हमेशा की तरह वादा, न आएगा वो शब भर फिर,
जगा कर रात भर हमको, हमें बेदार करता है
खता हम से हुई कैसी, लगा बैठे हैं दिल उससे,
जो इज़हार-ए-मुहब्बत से, सदा इन्कार करता है
मैं जब-जब फूल चुनता हूँ, चढ़ाने के लिये उसपर,
चुभोने को वो काँटों की, फसल तैय्यार करता है
ये कैसा प्यार है हर दम, मचलता है सताने को,
फसाने को मुहब्बत के, सदा मिस्मार करता है
अकीदा किस कदर मुझको, मुहब्बत पर मेरे दिल की,
जो इतनी ठोकरें खाकर, यकीं हर बार करता है
मुझे मालूम है यह भी, करूँ क्या"राज"इस दिल का,
जो महरूम-ए-वफा उससे, वफा दरकार करता है
२७ जनवरी
२०१४ |