अनुभूति में
राज सक्सेना
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
एक डर अन्जान सा
नहीं करता जो दुश्मन भी
बाबू जी
हे प्रियतम तुमने वसंत में
हैरान कर
देंगे
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हे प्रियतम
तुमने बसंत में
हे प्रियतम तुमने बसंत में,
क्या अपना आनन देखा है
सत्य कहो इस आनन जैसा, क्या महका मधुवन देखा है
हूक उठी है कभी हृदय में,एक अजब सी प्यास जगी क्या,
इस बसंत की किसी रात में, निज मन का नर्तन देखा है
रिमझिम वर्षा इन्द्रधनुष से, एक नई अनुभूति जगाकर,
काजल सी घनघोर घटा में, सन-सन करता तन देखा है
रस बरसाते पूर्ण चन्द्र ने, कभी नहीं क्या मधु बरसाया,
उस मधु से सिंचित परियों सा, क्या अपना यौवन देखा है
आह शिशिरके हिमपातों ने, असर नहीं क्या तुमपर डाला,
सर-सर चलती शीतपवन में, क्या जलता तनमन देखा है
"राज"तृषित नयनोंसे अपलक, देख
रहा है तुमको अविरल,
करुणकथा सा कुसुमित उसका, क्षुधित हृदयक्रंदन देखा है
२७ जनवरी
२०१४ |