अनुभूति में
मुसव्विर रहमान
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
इक अधूरी सी मुलाकात
कैसा अंधेर है
कौन सा लम्हा था
चमक रही हैं आँखें
जो हर इक बात पर |
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कौन सा लम्हा था
कौन सा लम्हा था जब मैं मुन्तजिर उसका न था
बस गया था धडकनों में वो मगर मिलता न था
मैं रहा बेचैन, पलकों पर बिठाऊँ चाँद को
कैसा जिद्दी था वो आँगन में कभी उतरा न था
उम्र भर ढोते रहे हम कागज़ी रिश्तों का बोझ
और अब जाना कि हम में तो कोई रिश्ता न था
उसमें थी संजीदगी, पाकीज़गी, शाइस्तगी
कोई उसके हुस्न की तमसील में ठहरा न था
मेरे कमरे में न रोशनदान थे, ना खिड़कियाँ
मेरे हिस्से में तो इक भी धूप का टुकड़ा न था
पहले रस्मे- दोस्ती, फिर प्यार, फिर दीवानगी
ऐसा पहले भी हुआ, ये सिलसिला पहला न था
प्यार का वो ख़त ‘मुसिव्वर’ आज तक महफ़ूज़ है
भेजने वाले का जिसपर नाम तक लिक्खा न था
१३ जनवरी २०१४ |