अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मुन्नी शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आज भी है
गूँगों की आवाज
पतझड़ भी लिख
बंदिशों को तोड़कर
शायरी अपना शगल

 

शायरी अपना शगल

शायरी अपना शग़ल अच्छा लगा
भीड़ से तन्हा सफ़र अच्छा लगा

मुश्किलों में जल गया सारा गुरूर
हसरतों का वो हवन अच्छा लगा

आँसुओं ने मैल दिल का धो दिया
नेमतों सा पाक ग़म अच्छा लगा

कोंपलों ने सिर झुकाकर यों कहा
बीज माटी में दफ़न अच्छा लगा

बस यहीं जन्नत यहीं मुल्के अदन
अपना घर अपना वतन अच्छा लगा

खुशबुएँ दीवार फाँदे आ गईं
दुश्मनों का भी चमन अच्छा लगा

छन रही है छप्परों से चाँदनी
झोपड़ी का यह महल अच्छा लगा

सुन रहा खामोश मेरी इल्तिजा
बुत बना पत्थर सनम अच्छा लगा

उम्र भर ढोते रहे दामन के दाग
मौत पर उजला कफ़न अच्छा लगा

९ दिसंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter