अनुभूति में
मुन्नी शर्मा
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आज भी है
गूँगों की आवाज
पतझड़ भी लिख
बंदिशों को तोड़कर
शायरी अपना शगल |
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बंदिशों को तोड़कर
बन्दिशों को तोड़कर इन सरहदों के पार चल
बीन ले राहों में बिखरे मुष्किलों के ख़ार चल
जंग खाए सींखचे मत ज़ोर नाहक आज़मा
इक ज़रा धक्का लगाकर तोड़ मेरे यार चल
ज़ीनतें बेनूर करती बुज़दिली,ये काहिली
बाज़ुओं की मछलियाँ खुलने भी दे इक बार चल
गुरबतें देता खुदा उनको जो हैं उसके अज़ीज़
मुफ़लिसों की बस्तियान दरवेश का संसार चल
खून के छींटे गुनाहों से सनी ये दौलतें
दूर रख,छोटी सी अपनी ज़िन्दगी दिन चार चल
सर को झुकने की रही आदत,पगों को थमने की
साँझ होने को मुसाफ़िर अब बढ़ा रफ़्तार चल
गीत मुस्कानों के जो रचती हूँ उनमें दम नहीं
ग़म ढला अल्फ़ाज़ में संग रो दिया संसार चल
नदिया का अहसान दरिया कैसे भूलेगा भला
शुक्रिया इमदाद का हर बून्द का आभार चल
ईंट के चूल्हे पे मोटी रोटियाँ मजदूर की
आज बिस्मिल्लाह यहीं करलें मेरे दिलदार चल
९ दिसंबर
२०१३ |