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अनुभूति में मेघ सिंह मेघ की रचनाएँ-

मुक्तक में-
सद्भाव के पैगाम

अंजुमन में-
कहीं गरीब
काबिले-विश्वास अब
गहन निद्रा में सखे
जो सत्य नजर आया
हर धरम

 

 

सद्भाव के पैगाम


सुप्तावस्था नहीं, जागरण चाहिये।
तम मिटाने को कोई किरण चाहिय्रे।
नाम रोशन हो जिससे मेरे देश का,
आज करना वही आचरण चाहिये।


जमाने की तो आदत है, गरीबों को सताने की,
हमारी राह में कंकड़, व कांटे भी बिछाने की।
मगर हमने कला ईजाद कर ली है अनोखी ये,
गमों के बीच हँसने औ, हमेशा मुस्कराने की।


नये आगाज़ करने हैं, नये अंजाम देने हैं,
मुहब्बत से भरे पूरे, सुबह औ शाम देने हैं।
कभी भी इक घड़ी को, तुम यहाँ नफरत नहीं बाँटो,
अमन के, प्यार के, सद्भाव के पैगाम देने हैं।


बढ़े सद्भाव हर दिल में, सुहाने गीत गाओ तुम।
अधर सबके ही मुस्काएँ, अनोखे मुस्कराओ तुम।
तिमिर अन्तःकरण का दूर, हो जाये स्वतः सारा,
हृदय आकाश में कोई, प्रखर दिनकर उगाओ तुम।


सभी से प्यार करने की, पुरानी मेरी आदत है।
यही सदधर्म मेरा है, यही मेरी इबादत है।
लगाना प्रेम का पौधा, बसाना प्यार की बस्ती,
यही उद्देश्य मेरा है, यही मेरी तिजारत है।

१७ फरवरी २०१४

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