अनुभूति में
मेघ सिंह मेघ
की रचनाएँ-
मुक्तक में-
सद्भाव के पैगाम
अंजुमन में-
कहीं गरीब
काबिले-विश्वास अब
गहन निद्रा में सखे
जो सत्य नजर आया
हर धरम
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कहीं गरीब का
कहीं गरीब का छीना, जो हक़ गया होगा
ज़िगर में तब ही तो शोला भड़क गया होगा
उसने डाले नहीं हथियार आखिरी दम तक
भले ही लड़ते-लड़ाते वो थक गया होगा
यही लगे है मुझे उसकी छटपटाहट से
ज़रूर ज़ख्म पे छिड़का नमक गया होगा
गमों में डूबी ये मुस्कान साफ कहती है
किसी की याद का लम्हा, कसक गया होगा
तुम्हारा “मेघ” तो सादा कबीर सा ठहरा
सभा में बैरी के भी, बे-हिचक गया होगा
१९ अगस्त २०१३ |