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अनुभूति में मेघ सिंह मेघ की रचनाएँ-

मुक्तक में-
सद्भाव के पैगाम

अंजुमन में-
कहीं गरीब
काबिले-विश्वास अब
गहन निद्रा में सखे
जो सत्य नजर आया
हर धरम

 

 

गहन निद्रा मे सखे

गहन निद्रा में सखे, सोते रहोगे जब तलक
रत्न जैसी जिन्दगी, खोते रहोगे जब तलक

पाओगे कैसे अरे, मीठे मधुर तुम आम्रफल
शूल औ त्रिशूल ही बोते रहोगे जब तलक

क्या मज़ा देगी तुम्हें फिर ये हसीं दुनिया भला
जिन्दगी को बोझ-सा, ढोते रहोगे जब तलक

‘नेक-नामी’ रूपसी का, ख्वाव भी मत देखिये
तुम यहाँ बदनाम यों, होते रहोगे जब तलक

तुम सफलता का कभी मतलब समझ न पाओगे
व्यर्थ का रोना लिये, रोते रहोगे जब तलक

पंचभूती यह सुरथ, सुखप्रद लगेगा आपको
अश्व तुम सौहार्द के, जोते रहोगे जब तलक

“मेघ” को प्यारी लगेगी, रूप की रंगीं चुनर
प्रेम के जल से उसे, धोते रहोगे जब तलक

१९ अगस्त २०१३

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