अनुभूति में ममता
किरण की रचनाएँ
नई रचनाएँ--
इक दूजे में
छुपा है दिल में
जाने कहाँ चले गए
याद आया
ये ख्वाहिश है
अंजुमन में—
आज मंज़र थे
कोई आँसू बहाता है
खुदकुशी करना
दायरे से
बाग जैसे गूँजता है पंछियों से
रात जाएगी सुबह आएगी
हवा डोली है
होली आई है
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ये ख्वाहिश है
ये ख़्वाहिश है कि मरते वक्त लब पर राम आ जाए
सुकूँ से मर सकूँ और रूह को आराम आ जाए
सभी चीज़ें पुरानी घर की यूँ मत फेंक देना तुम
न जाने कौन से पल चीज़ कोई काम आ जाए
गुज़रता जा रहा है वक़्त आपाधापी में यूँ ही
कभी मेरे भी हिस्से इक सुहानी शाम आ जाए
निकलते वक़्त घर से तुम सभी से मिल मिला लेना
न जाने किस धमाके से तेरा पैग़ाम आ जाए
मरूँ चाहे कहीं पर ख़ाक अपने देश में होऊँ
मेरी मिट्टी ही कुछ तो इस वतन के काम आ जाए
३१ जनवरी २०११
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