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अनुभूति में कुंवर बेचैन की रचनाएँ—

हाइकु में-
वर्षा हाइकु

गीतों में—
ओ बासंती पवन

दोहों में—
नौ दोहे

अंजुमन में—
अंगुलियाँ थाम के
कफ़न बाँधकर
करो हमको न शर्मिंदा
खुद को नज़र के सामने
दो दिलों के दरमियाँ
दोनो ही पक्ष
धुआँ
नीर की गठरी
प्यासे होंठों से
फिर युधिष्ठिर को पुकारा
बीती नहीं है रात
मत पूछिए

 

धुआँ

जब सुलगते दिल में आहें बन के छाता है धुआँ
हाथ में आकर भी क्या हाथों में आता है धुआँ

आग की लपटों में जब खुल कर नहाता है धुआँ
तैरकर कुछ दूर फिर क्यों डूब जाता है धुआँ

सबसे पहले तन को अपने ही जलाता है धुआँ
तब कहीं जाकर वे अपना सर उठाता है धुआँ

यह मेरे पलकों का जादू है कि वो काजल बना
वर्ना कब आँखों को अपना घर बनाता है धुआँ

इस धुएँ के सिर्फ़ काले रंग पै मत जाइए
यह भी देखें रोशनी को साथ लाता है धुआँ

यह किसी आँधी की साज़िश है कि जिससे आज भी
एक पूरा जिस्म होकर थरथराता है धुआँ

प्यार भी एक आग है यह आग बुझते ही 'कुँअर'
एक रिश्ते की तरह ही टूट जाता है धुआँ

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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