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अनुभूति में कुमार विनोद की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब नहीं लिखता कोई
जिंदगी जैसी भी है
तल्खियाँ सारी
फिर कोई सपना
सिर झुकाकर

 

तल्खियाँ सारी

तल्खियाँ, सारी फ़िजा़ में घोलकर
क्या मिलेगा बात सच्ची बोलकर

गुम हुए खुशियों के मौसम इन दिनों
इसलिए जब भी हंसो, दिल खोलकर

भेद खुल जाएँगे सब आकाश के
देख तो अपने परों को तोलकर

बात करते हो उसूलों की मियाँ
भाव रद्दी के बिकें सब तोलकर

शौक बिकने का अगर इतना ही है
जिस्म क्या, फिर रूह का भी मोल कर!

१७ दिसंबर २०१२

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