अनुभूति में
कुमार
विनोद की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब नहीं लिखता कोई
जिंदगी जैसी भी है
तल्खियाँ सारी
फिर कोई सपना
सिर झुकाकर
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अब नहीं लिखता कोई
अब नहीं लिखता कोई भी खत मुझे
डाकिया आकर मेरे घर क्या करे
काश! मैं चिड़िया की भाषा जानता
बोलना उनका मुझे अच्छा लगे
हाट पर बिकती नहीं मासूमियत
मुफ्त ही मिलती है, जिसको भी मिले
ये नहीं भटकाव तो फिर और क्या?
उम्र कच्ची हाथ में खंजर लिये!
धुंध ने जादू दिखाया जब कभी
पेड़, परबत, झील सब गायब हुए
बारिशों का प्यार उमड़ा देखकर
छत टपकती क्या कहे क्या ना कहे?
१७ दिसंबर २०१२ |