अनुभूति में
कुमार
विनोद की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब नहीं लिखता कोई
जिंदगी जैसी भी है
तल्खियाँ सारी
फिर कोई सपना
सिर झुकाकर
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फिर कोई सपना
फिर कोई सपना मेरी आँखों में
जुगनू भर गया
हाथ मेरे इस जमीं से आसमां तक कर गया
धड़कनों में उनकी, शामिल था खुदा का नाम भी
मज़हबी उन्माद का इल्ज़ाम जिनके सर गया
मंदिरों औ‘ मस्जिदों पर बाज मंडराते हुए
दूर से ही देखकर जिनको कबूतर डर गया
मोक्ष की बातों के लायक थी समझ उनमें कहां
प्रश्न रोटी से जुड़ा जिनको परेशां कर गया
थपकियाँ देता रहा तो कुछ को धमकाता रहा
शाम को थक-हारकर सूरज भी अपने घर गया
आखिरी उम्मीद खुद से थी, मगर जाती रही
एक खुद्दारी का था एहसास, वो भी मर गया!
१७ दिसंबर २०१२ |