जिन्दगी़ मेरी
जिन्दगी मेरी मुझसे डरती है
मुझसे नजरें बचा के चलती है।
दर्द का फर्श इतना चिकना है
रात अक्सर फिसल के गिरती है।
दिल की सुनसान झील में अक्सर
कोई परछाईं-सी उभरती है।
उसके पावों की सोच लेता हूँ
जिसकी आहट से साँस चलती है।
लोग मुझसे तो ये भी कहके गये
उसकी सूरत मुझ ही से मिलती है। |