कोई चाह गुनगुनाई
है फिर कोई चाह कुनमुनाई
है
फिर कहीं ओस झिलमिलाई है
फिर मेरी शाम भीगी भीगी है
फिर मेरी सोच में तनहाई है
फिर तेरी आग कुछ मुलायम है
फिर वही शब वही रुलाई है
और ये रात चौदवीं है सुन
फिर मुझे नींद नहीं आई है
फिर नए जंगलों से गुजरा हूँ
फिर मेरी उम्र लड़खड़ाई है |