अगर सूरत बदलनी
है
अगर सूरत बदलनी है तो फिर ये
सोचना कैसा
चलो आगे बढ़ो, पीछे को मुड़कर देखना कैसा
हवा आने दो ताज़ा, खोल दो सब
खिड़कियाँ घर की
हवा पे सबका हक है, यों हवा को रोकना कैसा
ये बच्चे नासमझ हैं, बद्दुआ
देना नहीं अच्छा
अरे छोड़ो मियाँ, इस उम्र में ये बचपना कैसा
ये दुनिया प्यार के बिन तो बड़ी
बेकार लगती है
'शलभ' उट्ठो, यहाँ अब और ज़्यादा बैठना कैसा!
२६ अक्तूबर २००९
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