अनुभूति में
खुर्शीद खैराड़ी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अपना गाँव
खेतों के दरके सीने पर
गम की गठरी को जीवन भर
दिल्ली के दावेदारों
बरसाती रातों का गम
भोर हुई
हमारी भूख को
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हमारी भूख को
हमारी भूख को
मुद्दा बनाकर
भरेंगे पेट सब धंधा बनाकर
अज़ल से में भटकता हूँ ख़ला में
खुद अपनी खोज में नक्शा बनाकर
न रक्खा काम का मुझको खुदाया
बुरे इस दौर में अच्छा बनाकर
मशीनी दौर ने हर आदमी को
कहीं फिट कर दिया पुरजा बनाकर
मुहब्बत बेतकल्लुफ़ दोस्ती को
कहेंगे लोग फिर किस्सा बनाकर
हमेशा वोट यों लेते रहेंगे
सियासतदाँ हमें बकरा बनाकर
ग़ज़ल में गुनगुनाऊँ ज़िंदगी की
हर इक ग़म को नया मिसरा बनाकर
जुनूँ पैदा करो कुछ तिशनगी में
दिखाओ रेत को दरिया बनाकर
किसे मालूम था उसका इरादा
ठहर जाएगा वो रस्ता बनाकर
ज़माना चाहता है अब उजाले
वली 'खुरशीद' को अंधा बनाकर
२२ दिसंबर २०१४
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