अनुभूति में
खुर्शीद खैराड़ी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अपना गाँव
खेतों के दरके सीने पर
गम की गठरी को जीवन भर
दिल्ली के दावेदारों
बरसाती रातों का गम
भोर हुई
हमारी भूख को
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बरसाती रातों का
गम
बरसाती रातों का गम, टूटे छप्पर से पूछो
सूखे सावन की पीड़ा, बेबस हलधर से पूछो
कौंपल कौंपल हरियाली, कैसे सिरजी है हमने
दर्द भरी यह ज़र्द व्यथा, ज़ालिम पतझर से पूछो
जागृति के गीतों को तजकर, मीठी लोरी गाता है
बेसुध सोयी जनता क्यों, युग के शायर से पूछो
दिल्ली से देहातों तक, दातादीनों की फौजें
गोदानों की युग-गाथा, होरी-गोबर से पूछो
दास कबीरा ने गाया, "ज्यों की त्यों धर दीनी ”
सच क्या है अपनी अपनी, मैली चादर से पूछो
आज़ादी ने हमको क्या, सौगातें सुविधाएँ दीं
गाँवों के आदिम पिछड़े, धूसर मंज़र से पूछो
सोने के झाबे वाला, सूआ क्या बतलायेगा
परवाज़ों का सुख क्या है, मुक्त कबूतर से पूछो
अँधियारा क्यों रहता है, झौपड़पट्टी में शब भर
दिन भर जगमग करते उस, रोशन मंदिर से पूछो
नर्म रजाई में दुबके, कॉफ़ी पीते हैं हम तुम
सर्द कथा फुटपाथों की, नंगे बेघर से पूछो
२२ दिसंबर २०१४
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