अनुभूति में
हाशिम रजा जलालपुरी
की रचनाएँ- अंजुमन में-
गमे विसाल रगों में
जिंदगी कहती है
तलाश करता हूँ
तेरे ख्याल तेरी आरजू
नहीं आता
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जिंदगी कहती है
ज़िन्दगी कहती है साँसों के सराबों से निकाल
ऐ खुदा! मुझको मोहब्बत के अजाबों से निकाल
इनकी ताबीरों से बहते हैं लहू के आँसू
मेरी आँखों को सुलगते हुए ख़्वाबों से निकाल
जंग करने पे हैं आमादा मेरे दिल और दिमाग़
कश्ती-ए-जान को मिट्टी के चनाबों से निकाल
बा खुदा मैं अलग हो जाऊँगा उस से लेकिन
पहले तू रंग को, खुशबू को गुलाबों से निकाल
नफरतों का जो सबक देते हों उन लफ़्ज़ों को
पाक दिल, फूल से बच्चों की किताबों से निकाल
जिनके किरदार से खुशबू नहीं बदबू आये
ऐसे अफ़राद को मजहब के निसाबों से निकाल
हो न जाए कहीं ग़ज़लों का तक़द्दुस पामाल
सिन्फ़े नाज़ुक को 'रज़ा' खाना ख़राबों से निकाल।
१ जून
२०१६ |