अनुभूति में
हाशिम रजा जलालपुरी
की रचनाएँ- अंजुमन में-
गमे विसाल रगों में
जिंदगी कहती है
तलाश करता हूँ
तेरे ख्याल तेरी आरजू
नहीं आता
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गमे विसाल रगों में
ग़मे विसाल रगों में उतर गया होता
अगर न तुझ से बिछड़ता तो मर गया होता
कभी लिबास की खुशबू कभी ज़ुबान का लम्स
मैं जाने कितनी हदों से गुज़र गया होता
महाज़े हिज्र पे जाने की उसको उजलत थी
वो गर ना आँखों का कश्कोल भर गया होता
हुसूले इल्म ने मसरूफ रक्खा वरना मैं
किसी को इश्क में बरबाद कर गया होता
ना जाने कब से तेरी मुंतज़िर हैं दो आँखें
तू मैकदे से कभी अपने घर गया होता
क़लम के बदले अगर तेग़ होती हाथों में
अदालतों की सज़ाओं से डर गया होता
"मुझे है तुम से मुहब्बत" ये उस ने बोला था
वो काश अपने कहे से मुकर गया होता।
१ जून
२०१६ |