यादों का साया
यादों का जब साया होगा।
दिल का आलम कैसा होगा।
सहरा में चलता वो मुसाफ़िर,
पानी को भी तरसा होगा।
नक्शे-कदम पे उनके चलकर,
कोई मुसाफ़िर भटका होगा।
शोख फ़िज़ा में मस्त पवन थी,
कोई न कोई भटका होगा।
ज़ख़्म जो दिल का हरा हुआ है,
क्या जाने कब अच्छा होगा।
मेरी बरबादी से उसने,
कुछ न कुछ तो सोचा होगा।
आओ ख़रीदें इश्को वफ़ा को,
महंगा मगर ये सौदा होगा।
छोड़ दिया जो साथ 'हसन' ने,
उसका भी दिल टूटा होगा।
२ फरवरी २००९
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