अनुभूति में हरि
अन्जान की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अगर चलने का
आया किये थे तेरे शहर
ज़ख़्मों को हवा
धूप
फ़ासिले
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ज़ख़्मों को हवा
आज ज़ख़्मों को हवा दो यारों
फिर मुझे मुझसे मिला दो यारों।
लोग जिसको ये ख़ुदा कहते हैं
बस मुझे उसका पता दो यारों।
इस शहर में बहुत अंधेरा है
घर किसी का तो जला दो यारों।
आरजू-ए-वफ़ा कहीं शेरों में
गर जिया है तो मिटा दो यारों।
था कभी अन्जान भी यहाँ कोई
याद कुछ हो तो बता दो यारों।
८ अगस्त २०११ |