अनुभूति में हरि
अन्जान की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अगर चलने का
आया किये थे तेरे शहर
ज़ख़्मों को हवा
धूप
फ़ासिले
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फ़ासिले
फ़ासिले जब तक जिया नहीं करते,
मंज़िलें तब तक किया नहीं करते।
यूँ दरों को बंद क्या रखा जाए,
हादिसे दस्तक दिया नहीं करते।
वो ज़रा सिसकी है ख़ामोशी वरना,
आप तो उफ़ तक किया नहीं करते।
ऐतबार अगर ज़रा कहीं होता,
वायदे बेशक किया नहीं करते।
आशियां जब तक है हाशियों पे यां,
चाहतें नाहक़ किया नहीं करते।
८ अगस्त २०११ |