अनुभूति में
गुलाब जैन की
रचनाएँ -
अंजुमन में-
इससे पहले
चाहतें थी कभी
मंजिल मिल भी गयी
यहाँ आस्तीनों में
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मंज़िल मिल भी गई
मंज़िल मिल भी गई तो क्या होगा
सफ़र का लुत्फ़ किरकिरा होगा
ग़मज़दा होकर भी मुस्कराता है
ग़ौर से देख वो मसखरा होगा
उसकी फ़ितरत में वफादारी है
लाज़मी तौर पे वो सिरफ़िरा होगा
उसके होठों से हँसी ग़ायब है
अपने माजी से वो घिरा होगा
वो सियासत के गुर से वाक़िफ़ है
अपनी हर बात से फिरा होगा
१ जून २०१७
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