अनुभूति में
गुलाब जैन की
रचनाएँ -
अंजुमन में-
इससे पहले
चाहतें थी कभी
मंजिल मिल भी गयी
यहाँ आस्तीनों में
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चाहतें थीं कभी
चाहतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
राहतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
आँखों-आँखों से, कुछ कहने की
इनायतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
वो रूठने की और मनाने की
आदतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
बिछड़ने की और दूर जाने की
शिकायतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
साथ देने और वादा निभाने की
रवायतें थीं कभी, अब कुछ नहीं
१ जून २०१७
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