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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

कोई बरसता रहा

कोई बरसता रहा बादलों की भाषा में
कोई तरसता रहा मरुथलों की भाषा में

ज़ुबान होश की उसको समझ नहीं आती
बहक रही है सदी, मनचलों की भाषा में

तमाम खेत निवाले बने हैं शहरों के
यहाँ किसान कहे क्या हलों की भाषा में

सुकूँ ज़रूर है अब हम यहाँ ग़ुलाम नहीं
बँधे हुए हैं मगर साँकलों की भाषा में

सवाल हमने किए हैं बड़े ही संजीदा
न टालिएगा इन्हें चुटकलों की भाषा में

ग़ज़ल हमारी हो कैसे ज़ुबान पर उनकी
जो चाहते हैं ग़ज़ल पायलों की भाषा में

३० जून २००८

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