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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

बंद कमरों के लिए

बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
खिड़कियाँ हों हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम

आदमी को आदमी से दूर जिसने कर दिया
ऐसी साज़िश के लिए हर बद्दुआ लिखते हैं हम

जो बिछाई जा रही हैं ज़िन्दगी की राह में
उन सुरंगों से निकलता रास्ता लिखते हैं हम

आपने बाँटे हैं जो भी रौशनी के नाम पर
उन अँधेरों को कुचलता रास्ता लिखते हैं हम

ला सके सब को बराबर मंज़िलों की राह पर
हर क़दम पर एक ऐसा क़ाफ़िला लिखते हैं हम

मंज़िलों के नाम पर है जिनको रहबर ने छला
उनके हक़ में इक मुसल्सल फ़ल्सफ़ा लिखते हैं हम

३० जून २००८

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