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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

दिलों की उलझनों से

दिलों की उलझनों से फ़ैसलों तक
सफ़र कितना कड़ा है मंज़िलों तक

यही पहुँचाएगा भी मंज़िलों तक
सफ़र पहुँचा हमारा हौसलों तक

ये अमनो—चैन की डफली ही उनकी
हमें लाती रही कोलाहलों तक

दरख़्तों ने ही पी ली धूप सारी
नहीं आई ज़मीं पर कोंपलों तक

हम उनकी फ़िक्र में शामिल नहीं हैं
वो हैं महदूद ज़ाती मसअलों तक

ज़माने के चलन में शाइरी भी
सिमट कर रह गई अब चुटकलों तक

यहाँ जब और भी ख़तरे बहुत थे
'द्विज'! आता कौन फिर इन साहिलों तक

३० जून २००८

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