मिलने नहीं वो आए
मिलने नहीं वो आए, कई रोज़ हो
गए!
उनसे नज़र मिलाए, कई रोज़ हो गए!
कैसे बताएँ उनको परेशान कितना
हूँ,
होंठों को मुस्कुराए, कई रोज़ हो गए!
जब से किया पसंद उन्हें, क्या
बताएँ हम,
मुझको न कोई भाए, कई रोज़ हो गए!
रातों को करवटें मैं बदलता ही
रहता हूँ,
आँखों से नींद जाए, कई रोज़ हो गए!
होते थे सामने तो बहक जाते थे
क़दम,
अब वो नशा भी छाए, कई रोज़ हो गए!
जाने कि प्यार करता हूँ मैं
उनसे या नही,
ख़ुद को भी आज़माए, कई रोज़ हो गए!
अपनी ग़ज़ल को आप ही मैं भूलता
रहा,
उसको भी गुनगुनाए, कई रोज़ हो गए!
२६ जनवरी २००९ |