अनुभूति में
डॉ. भावना की रचनाएँ-
नयी रचनाओं
में-
अचेतन और चेतन में
इस ज़मीं से आसमाँ तक
कैसे दिन
नयन से जो आँसू
भाप बनकर
छंदमुक्त
में-
नदी छह कविताएँ
अंजुमन में-
अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर
प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का
चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं
हवा तो हल्की
आने दो |
|
मुझे घर से निकलना
मुझे घर से निकलना आ गया हैं
कठिन राहों पर चलना आ गया है
भला उसको फिक्र क्या नींद की हो
जिसे करवट बदलना आ गया हैं
खुशी की इस तरह लत सी रही है
कि बच्चों सा मचलना आ गया है
हुनर हम सीख लेंगे वक्त से अब
मुझे सूरज सा ढलना आ गया है
संभल जाओ मेरे हाथों की रेखा
मुझे किस्मत बदलना आ गया है
२१ जनवरी २०१३ |