अनुभूति में
डॉ. भावना की रचनाएँ-
नयी रचनाओं
में-
अचेतन और चेतन में
इस ज़मीं से आसमाँ तक
कैसे दिन
नयन से जो आँसू
भाप बनकर
छंदमुक्त
में-
नदी छह कविताएँ
अंजुमन में-
अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर
प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का
चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं
हवा तो हल्की
आने दो |
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अपने गम को
अपने गम को खुशी से हटाने लगे
इस तरह जिन्दगी हम बिताने लगे
अपने रोने में उनकी हँसी घोलकर
अपनी आँखों के आँसू छुपाने लगे
लत उलझन में रहने की ऐसी लगी
बारहा मुश्किलों को बढ़ाने लगे
प्यार की राह होती ना आसाँ कभी
सोचकर हम यही मुस्कुराने लगे
हम तो बदनाम हैं और मशहूर भी
इसलिए हर जगह पूछे जाने लगे
५ मई २०१४ |