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अनुभूति में डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आज कितने उदास
इन अँधेरी बस्तियों में
एक दिन ऐसा भी आएगा
फिर कई आज़ाद झरने
सो रहा है ये जमाना

 

सो रहा है ये ज़माना

सो रहा है ये जमाना और हम खामोश हैं
आदमी पर है निशाना और हम खामोश हैं।

आजमी सदियों से पागल जिसको पाने के लिये
लुट रहा है वो खजाना और हम खामोश हैं।

अब दिलों की बात सुनकर भी नहीं रोते हैं दिल
टूटता दिल का तराना और हम खामोश हैं।

जिंदगी शायद गजल से रूबरू होने को है
जल रहा है आशियाना और हम खामोश हैं।

शायरी चैतन्य हमसे और अब क्या चाहिये
है न जीने का ठिकाना और हम खामोश हैं।

२९ नवंबर २०१०

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