अनुभूति में
डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की रचनाएँ-
अंजुमन
में-
आज कितने उदास
इन अँधेरी बस्तियों में
एक दिन ऐसा भी आएगा
फिर कई आज़ाद झरने
सो रहा है ये जमाना
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इन अँधेरी बस्तियों में
इन अँधेरी
बस्तियों में रौशनी आती तो है
भोर का पैगाम सूरज की किरण लाती तो है
क्या हुआ जो हो गया फिर से अँधेरों का चलन
रौशनी दीवार से हर बार टकराती तो है
सह रहे हैं सब जमाने की यही रफ्तार फिर
धमनियों से खून की आवाज भी आती तो है
भुखमरी सूखा अकालों से घिरे इस देश में
जब कभी इन उत्सवों की ये बहार आती तो है
हर तरफ खामोशियाँ है लोग घबराए हुए
साँस की इस बाँसुरी पर जिंदगी गाती तो है
मर गया आदमी की आँख का पानी मगर
आज कोई आँख इस पर आग बरसाती तो है
एक दिन चैतन्य तेरे गीत गूँजेंगे यहीं
फैलती कोई हवा है साँस घबराती तो है
२९ नवंबर २०१०
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