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अनुभूति में डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आज कितने उदास
इन अँधेरी बस्तियों में
एक दिन ऐसा भी आएगा
फिर कई आज़ाद झरने
सो रहा है ये जमाना

 

एक दिन ऐसा भी आएगा

एक दिन ऐसा भी आएगा हमें मालूम था
ये समय भी बीत जाएगा हमें मालूम था

भावना की गुनगुनी उस धूप को क्या दोष दें
छोड़कर साया भी जाएगा हमें मालूम था

जिंदगी ये आँधियों वाली अँधेरी रात थी
कोई सूरज धूप लाएगा हमें मालूम था

बादलों के गाँव में मेहमान था मेरा ये दिल
बिजलियों का प्यार पाएगा हमें मालूम था

उस गली के मोड़ पर छत के खुले आकाश से
चाँद हम पर मुस्कुराएगा हमें मालूम था

जिंदगी की आग वो चैतन्य यों मिलती नहीं
आदमी यह भूल जाएगा हमें मालूम था

२९ नवंबर २०१०

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