डॉ. भगवान
स्वरूप चैतन्य
सन १९६२ में
चीनी आक्रमण के बाद देश के जिन युवा रचनाकारों ने देशभक्ति
पूर्ण कविताएँ रचकर गली गली और मुहल्ले मुहल्ले घूमकर नुक्कड़
सभाओं के जरिये राष्ट्रीय रक्षाकोश एकत्रित करने भारतीय जवानों
की हौसलाफजाही के लिये काव्यपाठ किया था उनमें उस समय के युवा
कवियों में भगवान स्वरूप चैतन्य का भी नाम आदर के साथ जुड़ता
है। राष्ट्रभाषा के प्रचार प्रसार के लिये उन्होंने दक्षिण
भारत में भी हिंदी का अध्यापन कार्य किया। वे अंडमान निकोबार
द्वीप समूहों में भी अपनी विचारधारा, राष्ट्रीय चेतना, हिंदी
प्रेम, व गीत कविताओं को लेकर वहाँ के साहित्यिक वातावरण में
सबकी आँखो के तारे और गतिविधियों का केन्द्र बने रहे।
लगभग २०-२१ वर्ष की आयु में जब उन्हें सन १९७३-७४ में उनकी
प्रथम प्रकाशित काव्यकृति पर “धमनियों के देश में” राष्ट्रीय
मुक्तिबोध कविता पुरस्कार मिला तो इस वर्ष के किसी कवि को
मिलनेवाला यह पहला प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार था। |
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अनुभूति में
डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य की रचनाएँ-
अंजुमन
में-
आज कितने उदास
इन अँधेरी बस्तियों में
एक दिन ऐसा भी आएगा
फिर कई आज़ाद झरने
सो रहा है ये जमाना
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