अनुभूति में
भरत तिवारी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
किस को नज़र करें
जब नकाब-ए-दोस्ती
दौर है तमाशे का
बुद्धू बक्से
सियासत से बच न पायी |
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सियासत से बच न पाई
सियासत से बच न पायी
खबरनवीसों की खुदायी
हाथ जिसके कलम थमायी
उसीने सच को आग लगायी
हुक्मरां के खून की अब
लालिमा है धुन्धलायी
ना चढ़े अब कोइ कालिख
पर्त ज़र की रंग लायी
नाम-ए-धर्म के खिलौने
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
वक्त की कहते खता वो
ले रहे जैसे जम्हाई
देश का प्रेमी बना वो
इक मुहर नकली लगायी
सोन चिड़िया फ़िर लुटी है
सब विभीषण हुए भाई
चोर की दाढ़ी जिगर में
अब ‘शजर सब ने छुपाई
११ फरवरी २०१३ |