अनुभूति में
भरत तिवारी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
किस को नज़र करें
जब नकाब-ए-दोस्ती
दौर है तमाशे का
बुद्धू बक्से
सियासत से बच न पायी |
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दौर है तमाशे का
दौर है तमाशे का
बस जुबां चलाने का
तोड़ घर गरीबों का
बिल्डिंगें बनाने का
दुश्मनी पड़ोसी से
दोस्ती भुलाने का
जिस ज़मीं शऊर आया
वो शहर जलाने का
जो करे वतन की बात
आवाज़ वो दबाने का
तुम ‘शजर’ समझते नहीं
खेल इस ज़माने का
११ फरवरी २०१३ |