अनुभूति में
भरत तिवारी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
किस को नज़र करें
जब नकाब-ए-दोस्ती
दौर है तमाशे का
बुद्धू बक्से
सियासत से बच न पायी |
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जब
नकाब-ए-दोस्ती
जब नक़ाब-ए-दोस्ती बिकने लगी
साँस घुटती सिसकियाँ भरने लगी
शक्ल असली सामने आ ही गयी
चुस्त बखिया थी मगर खुलने लगी
कम नहीं थे गम यहाँ पहले भी कुछ
लो अटकती साँस भी रुकने लगी
दूरियों के छुप ना पाये तब निशाँ
जब ज़रा सी बात भी बढ़ने लगी
इश्क भी ना बच सका माहौल से
चाल शतरंजी यहाँ बिछने लगी
११ फरवरी २०१३ |