बरसता अब्र है
बरसता अब्र है या मेरे अश्कों की
रवानी है
समझते हो जिसे पानी, असल में खूँ फ़शानी है
सुनाई दोस्तों ने दास्ताने-ग़म,
बहुत रोए
न थी हमको ख़बर इसकी, हमारी ही कहानी है
नज़र आता नहीं शीशे में क्यों
मुझको मेरा चेहरा
हुई कम मेरी बीनाई, कि उतरा इसका पानी है
सुखन दां रह गए हैं कम, तो हैं
या कद्र दां कमतर
यह दौरे-शायरी कैसा, यह कैसी शेरख्व़ानी है
हमें तो मार ही डाला था 'आतिश'
ज़िंदगानी ने
जिए उम्मीद में जिसकी, कज़ा-ए-नागहानी है
कठिन शब्दों के अर्थ :-
खूं फ़शानी - ख़ून बहना
सुख़न दां - शायर
शेरख्व़ानी - शेर पढ़ना
कज़ा-ए-नागहानी- आकस्मिक मृत्यु
९ जुलाई २००६ |