अनुभूति में
आर्य हरीश कोशलपुरी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
क्या पता
जिंदा है पर
नादानों से
पिंजरे में
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पिंजरे में
दायरे की उड़ान पिंजरे में
एक चिड़िया की जान पिंजरे में
एक घेरे में अपनी आज़ादी
चल रहा राष्ट्रगान पिंजरे में
अपने खेमे के सारे स्पीकर
कर रहे हैं बखान पिंजरे में
आपको हो गई है खुशफ़हमी
वैसे सारा जहान पिंजरे में
खोल दूँ तो बवाल हो जाये
बंद है हर बयान पिंजरे में
टूटती जा रही हैं सीमाएँ
आ गई है थकान पिंजरे में
१ जुलाई २०१६ |