कुछ निशाँ रह गए
कुछ निशाँ रह गए इक कहानी हुई,
अए मुहब्बत तेरी ज़िन्दगानी हुई
जो कभी उस समन्दर की तस्कीन थी,
वो किनारों से लड़ती रवानी हुई
उनकी आँखों में झाँको तो एहसास
हो,
बूँद सागर की है जो ज़ुबानी हुई
चंद रिश्तों की रस्में निभाते
रहे,
बर्फ़ जमती रही और पानी हुई
जिस्म हावी है शायद मेरी रूह
पे,
हाय हाय ये कैसी जवानी हुई
कत्ल की रात "रंजन" वो कहता
रहा,
आपकी ये सज़ा अब पुरानी हुई
११ मई २००९ |