अधूरी नज़्म की तहरीर
अधूरी नज़्म की तहरीर जैसे,
गुज़ारे वक्त की तस्वीर जैसे
वो दौर-ए-जाम और वो लडखडाना,
कोई बिगड़ी हुई तकदीर दीर जैसे
मिज़ाज़-ए-लखनऊ है शायराना,
कोई गालिब है कोई मीर जैसे
लगा जाता है जब भी वक्त मरहम,
चुभा जाता है कोई तीर जैसे
तुम्हारी याद है महफ़ूज़ दिल
में,
चिराग-ए-नूर की तनवीर जैसे
कई तूफ़ान हैं कतरे की जानिब,
समंदर की यही तासीर जैसे
मुझे बिखरा हुआ पाओगे "रंजन",
कोई टूटी हुई ज़ंजीर जैसे
११ मई २००९ |