बात करता हूँ
छलकते हुस्न की रानाइयों की बात
करता हूँ,
मचलते जिस्म की परछाइयों की बात करता हूँ
कई तन्ज़ान से चुभते हैं मेरे
जिस्म में आकर,
मैं अक्सर मुल्क पे कुरबानियों की बात करता हूँ
कई आवाज़ मिलतीं हैं, बडी
शिद्दत से सुनती हैं,
मैं जब भी गैर की बर्बादियों की बात करता हूँ
खुदा भी हंस के दामन देखता होगा
सफ़ीने का,
मैं जब भी डूबते फ़रियादियों की बात करता हूँ
कोई मकरूह सा साया लगा है
हिन्द के पीछे,
मैं डरता हूँ मगर आबादियों की बात करता हूँ
कभी जो काटती थी नोचती थी शाम
से मुझको,
कलम से मैं उन्ही तन्हाइयों की बात करता हूँ
शजर एकबार मुझसे कह रहा था
गमज़दा होकर,
"परिन्दों से तो बस अज़ादियों की बात करता हूँ"
मेरे टूटे हुए से ख्वाब भी अब
रूठ जाते हैं,
मैं उनसे जब कभी शहनाइयों की बात करता हूँ
किसी टूटे से दिल को हौसला देकर
के देखो तो,
चिरागों से मैं अक्सर आँधियों की बात करता हूँ
जुडे बिस्तर पे जब भी देखता हूँ
करवटें उलटी,
मैं रूठे इश्क से गहराइयों की बात करता हूँ
'फ़टाफ़ट दौर' है जल्दी ही
दुनिया देख लेंगे वो,
मैं बच्चों से कई शैतानियों की बात करता हूँ
मुखौटों में छुपी रहती है बेबस
गम की तहरीरें,
मैं अक्सर भीड से तन्हाइयों की बात करता हूँ
"वही रोटी है आधी बाँट लो और खा
के सो जाओ",
तड़प जाता हूँ पर महंगाइयों की बात करता हूँ
मुझे अब दर्द की मकसूद मंज़िल
मिल गई "रंजन",
मैं राह-ए-खार में आसानियों की बात करता हूँ
११ मई २००९ |